मंगलवार, जुलाई 18, 2017

ये ज़रूरी तो नहीं

वफ़ा के बदले वफ़ा मिले, ये ज़रूरी तो नहीं 
हर चाहत का सिला मिले, ये ज़रूरी तो नहीं।

किसकी पहुँच कहाँ तक है, ये अहमियत रखता है 
गुनहगारों को सज़ा मिले, ये ज़रूरी तो नहीं।

ये सच है, अच्छाई अभी तक ज़िंदा है, फिर भी 
यहाँ हर शख़्स भला मिले, ये ज़रूरी तो नहीं।

जिनकी फ़ितरत है बद्दुआएँ देना, वे देंगे ही 
तुझे हर किसी से दुआ मिले, ये ज़रूरी तो नहीं।

दिल से पूछकर, दिमाग से सोचकर, चल पड़ तन्हा 
हर राह के लिए क़ाफ़िला मिले, ये ज़रूरी तो नहीं।

कोशिश तो कर ‘विर्क’ अपने भीतर लौटने की 
इसी जन्म में ख़ुदा मिले, ये ज़रूरी तो नहीं।

दिलबागसिंह विर्क 

2 टिप्‍पणियां:

Ravindra Singh Yadav ने कहा…

हालात का ज़िक्र बड़ी शिद्दत के साथ। असरदार प्रस्तुति।

Meena sharma ने कहा…

ये सच है, अच्छाई अभी तक ज़िंदा है, फिर भी
यहाँ हर शख़्स भला मिले, ये ज़रूरी तो नहीं।
बहुत खूब !

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