बुधवार, जनवरी 17, 2018

आसमां बिजली गिराने को है

ये दिल मचलकर बाहर आने को है
इसकी बेबसी मुझे रुलाने को है । 

ज़माने ने छीन ली है छत सिर से 
और आसमां बिजली गिराने को है।

उलझ गया हूँ मैं, कोई बताए मुझे 
क़सम खाने को है या निभाने को है।

लापरवाहियाँ मैंने छोड़ी ही नहीं 
तमाशबीन फिर आग लगाने को है।

अमन, ख़ुशी, प्यार की उम्मीदों का महल 
दहशत के इस दौर में चरमराने को है ।

किसी को भी अब परवाह नहीं इसकी 
वफ़ा का फूल ‘विर्क’ मुरझाने को है।

दिलबागसिंह विर्क 
****** 

बुधवार, जनवरी 10, 2018

बड़ा मुश्किल है बनाना घर

आँधी, तूफ़ां और सूरज की तल्ख़ियाँ झेलकर 
देखो उसे, छाँव दे रहा है हमें जो शजर ।

नींव में डालनी पड़े हैं अक्सर ख़ुद की ख़ुशियाँ 
मकां बना लोगे, बड़ा मुश्किल है बनाना घर ।

वक़्त तो लगता ही है, बीज को शजर होने में 
अच्छे कामों का, देर बाद दिखाई दे असर ।

किसी को हक़ नहीं दूसरे पर हुकूमत का 
जी ऐसे, न किसी को डरा, न किसी से डर।

मासूम होना कोई गुनाह तो नहीं, फिर भी 
बदलते हुए हालातों पर भी, रख थोड़ी नज़र।

माना ‘विर्क’ तेरा पेशा है नसीहतें देना 
मगर ख़ुद को सुधारने की भी कर फ़िक्र।

दिलबागसिंह विर्क 
*****
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...