सोमवार, मार्च 21, 2016

धड़कनों पर तेरा नाम है

याद है, जाम है, शाम है 
दर्द को आज आराम है । 

क्या मुहब्बत इसी को कहें 
धड़कनों पर तेरा नाम है । 

दोस्ती कर रहा किसलिए 
प्यार है या तुझे काम है । 

जिस्म तक रह गई सोच बस 
आजकल इश्क़ बदनाम है । 

बात दिल की सुनो तो सही 
गूंजता ' विर्क ' इल्हाम है । 

दिलबागसिंह विर्क 
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इल्हाम - हृदय में आई ईश्वर की बात, 
देववाणी, आकाशवाणी 

मंगलवार, मार्च 15, 2016

भेड़िए की जीत

आज तेरे पास नहीं 
भले ही गुजारे लायक साधन 
मौसमों की मार भी पड़ती है तुझ पर 
गले तक कर्ज में भी डूबा है तू 
मगर तू वंशज है ऊँचे खानदान का 
पीढ़ियों पहले 
तुम्हारी जाति के लोगों ने 
किया था शोषण हमारी जाति का 
अब उसकी सजा भुगतनी होगी तुझे 
ये कहकर निगल गया 
सामाजिकता का भेड़िया
आर्थिकता के मेमने को 

अतीत का बदला ले लिया गया 
वर्तमान से 
और नींव रख दी गई भविष्य की 

मेमना कभी भेड़िया था
भेड़िया कभी मेमना था
मेमने और भेड़िए बदलते रहे हैं 
हर दौर में
मगर भेड़िए अतीत में भी जीते थे 
वर्तमान में भी जीत रहे हैं 
भविष्य में भी जीतेंगे...

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, मार्च 09, 2016

मन और पत्ते

लालच 
छोटा हो या बड़ा 
मन डोल ही जाता है 
लालच को देखकर 
वैसे ही जैसे 
डोल जाते हैं पत्ते 
हवा चलने पर 

पत्तों की तरह 
बेशक दिखता नहीं 
मन का डोलना 
मगर झलकता है 
हमारे कृत्यों में 

मौजूद रहता है यह लालच 
अनेक रूपों में 
हर जगह
हर समय 
हवा की तरह 
कमोबेश मात्रा में 

पत्तों का डोलना 
हार नहीं होती पेड़ की 
लेकिन मन का डोलना 
हार होती है आदमी की 
आखिर फर्क तो है 
मन और पत्तों में 
आदमी और पेड़ में |

दिलबागसिंह विर्क 
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