मंगलवार, अगस्त 26, 2014

तेरा नाम लेकर धड़कती है धड़कन

गर सुलझा सके तो सुलझा मेरी उलझन 
तेरी याद को मैं दोस्त कहूँ या दुश्मन |

गम तो थे मगर ये सब थे छोटे - छोटे 
कैसी ये जवानी है, छीन लिया बचपन |

तुझे भूल जाना मेरे वश में कब है 
तेरा नाम लेकर धड़कती है धड़कन | 

बिखर गई सारी उम्मीदें देखते-देखते 
कोई काम आ न सका मेरा दीवानापन |

यूं तो पत्थरों में भी ख़ुदा रहता है 
अपने पास गर हो देखने वाला मन |

पल-पल बदलें हैं ' विर्क ' हालात यहाँ 
सहरा लगती है ये जिंदगी कभी गुलशन | 

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - शून्य से शिखर तक 
संपादक - आचार्य शिवनारायण देवांगन ' आस '
प्रकाशन - महिमा प्रकाशन , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
प्रकाशन वर्ष - 2007

मंगलवार, अगस्त 19, 2014

मेरा ग़म मुझे उठाना होगा

किस दर्द का जिक्र छेड़ूँ मैं, कौन-सी दवा बताओगे ?
जाने-अनजाने तुम भी तो मेरे ज़ख़्म सहलाओगे । 

भर दोगे अश्क़ मेरी आँखों में, खुद को भी रुलाओगे 
छोड़ो मुझे मेरे हाल पर, इस दास्तां से क्या पाओगे ?
टोकरी नहीं फूलों की जो मेरी जगह उठा लो तुम 
मेरा ग़म मुझे उठाना होगा, तुम कैसे उठाओगे ?

मानने को तैयार हूँ मैं सब मशविरे मगर बताओ 
तुम दिल के कंगूरों से, क्या यादों को भी उड़ाओगे ?

तुम्हारे ज़हन में होंगे खुद के हजारों मसले इसलिए 
याद रखोगे मुझे कुछ देर, फिर सब कुछ भुलाओगे । 

सोचोगे ' विर्क ' बाद में, यूँ ही वक़्त जाया किया मैंने 
पल-दो-पल बातें करके मुझसे, तुम फिर पछताओगे । 

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - अंतर्मन 
प्रकाशक - अनिल शर्मा ' अनिल '
प्रकाशन - अमन प्रकाशन, धामपुर { बिजनौर }
प्रकाशन वर्ष - 2007 

मंगलवार, अगस्त 12, 2014

चुप रहो, चुप रहो, चुप रहो

बात के मा 'ने बदलने के लिए बस काफी है वो 
मेरे होंठों, तेरे कानों के बीच फ़ासिला है जो । 

ये बात और है, हमने चुन लिए अलग-अलग रास्ते 
यूँ तो बचपन से हमें सिखाया गया था, मिलकर चलो । 

आदत बन गई है , राह चलती मुश्किलों को बुलाना 
मालूम नहीं, किससे सीखा हमदम बनाना दर्द को । 

दिल के दरवाजे पर जब दस्तक देती है तेरी याद 
लब खामोश हो जाते हैं और आँख पड़ती है रो । 

ख़ुशी बाँटना न चाहें हम, गम बँटाता नहीं कोई 
झूठी लगती है ये बात, जो भी मिले उसे बाँट लो । 

किसे ठहराऊँ कसूरवार ' विर्क ' अपनी गलतियों के लिए 
बारहा कहा था खुद से, चुप रहो, चुप रहो, चुप रहो । 

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - अंतर्मन 
संपादक - अनिल शर्मा ' अनिल '
प्रकाशन - अमन प्रकाशन, धामपुर { बिजनौर }
प्रकाशन वर्ष - 2007  

बुधवार, अगस्त 06, 2014

अकेला चाँद ही नहीं दाग़दार

बनने  को  तैयार हूँ  मैं  कर्जदार 
दे सकता है तो दे ख़ुशी उधार |
हर शख्स के दिल में दाग़ है यहाँ 
अकेला चाँद ही नहीं दाग़दार |

दहशत के बादल हर वक्त छाए रहे 
इस मुल्क में कब था मौसम खुशगवार |

ज़िन्दगी की हकीकत है बस यही 
चंद खुशियाँ और गम बेशुमार |

आदमियों के धंधों को देखकर 
हो रही है आदमियत शर्मसार |

कोई हल नहीं निकले है मसलों का 
पुकार सके तो ' विर्क ' खुदा को पुकार |

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - प्रतीक्षा रहेगी 
संपादक - जयसिंह अलवरी 
प्रकाशक - राहुल प्रकाशन, सिरगुप्पा { कर्नाटक }
प्रकाशन वर्ष - मार्च 2007 
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