शुक्रवार, फ़रवरी 22, 2013

अग़ज़ल - 51

राह चलते-चलते दर्द मुझ पर मेहरबां हो गया 
देखो बिन बुलाए यह उम्र भर का मेहमां हो गया ।

तन्हा थे उस दिन जब सोची थी मुहब्बत की बात 
धीरे-धीरे अब साथ अश्कों का कारवां हो गया ।

मैं पागल था जो सरेआम कह बैठा चाँद उन्हें 
और उन्हें मेरी इसी बात का गुमां हो गया ।

क्या करें, सदा मेरी अब उन तक पहुंचती ही नहीं 
चंद दिनों में ही वो दूर होकर कहकशां हो गया ।

कभी हल्का-ए- गिर्दाब से निकाल लाए थे कश्ती 
मगर आज हवा का हल्का-सा झोंका तूफां हो गया ।

तन्हाइयों में बैठकर विर्क अब सोचते हैं अक्सर 
ख़ुशी क्यों न मिली, क्यों हर यत्न रायगां हो गया ।

दिलबाग विर्क 
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गुमां  - घमंड 
कहकशां - आकाश गंगा 
हल्का-ए- गिर्दाब - भंवर की परिधि 
रायगां - निष्फल 
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मंगलवार, फ़रवरी 05, 2013

अग़ज़ल - 50

जीना नहीं आया यारो, मुझको जीना नहीं आया 
जिन्दगी क्या थी ? दो घूँट जहर, पीना नहीं आया ।

जमीं के गुलशन और दिल के चमन में फर्क है यही 
टूटा जो दिल तो फिर बहार का महीना नहीं आया ।
खून जलाना पड़ता है यहाँ दो वक्त की रोटी के लिए 
वो क्या जाने असलियत जिसे पसीना नहीं आया ।

करीने-कयास के सहारे कब तक मिलती कामयाबी 
हमें हुनर से कामयाब होने का करीना नहीं आया ।

उनकी फितरत में थी बेवफाई , वो कर गए लेकिन 
ये मेरी खता है, चाक जिगर को सीना नहीं आया ।
खतरे ही खतरे हैं ' विर्क ' इस मुहब्बत के दरिया में 
इस सफर से सलामत दिल का सफीना नहीं आया ।

दिलबाग विर्क 
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करीने-कियास  --- अटकल से ठीक होना 
करीना ---- ढंग 
चाक --- विदीर्ण , फटा हुआ 
सफीना  ---  नौका, नाव 
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