शुक्रवार, मार्च 16, 2012

आशा

स्थायी नहीं 
दुःख का पतझड़ 
जब पड़ेंगी
आशाओं की फुहारें
खिलेगी जिन्दगी ।

निराशा विष
आशा जीवनामृत
दोनों विरोधी
चुनाव है तुम्हारा
चुन लेना जो चाहो ।

* *  

9 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया क्षणिका है!

Vaanbhatt ने कहा…

दुःख-सुख...आशा-निराशा...अपने हाथ है...

एक पुराना गीत याद आ रहा है...

सुख-दुःख की क्या बात है...
क्या दिन है क्या रात है...
आंसू भी मुस्कान बने...
ये तो अपने हाथ है...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर ...
अच्छे भाव.
दूसरा तो परफेक्ट तांका है....

बधाई.

babanpandey ने कहा…

आशा का वृक्ष .... सूखने न पाए सुंदर प्रस्तुति

Maheshwari kaneri ने कहा…

आशा जीवन की मुस्कान है..इसे मिटने न दें..सुंदर प्रस्तुति

amrendra "amar" ने कहा…

बहुत सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,....

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

सही चुनाव से जी जीवन को राह मिलती हैं

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (12-02-2020) को    "भारत में जनतन्त्र"  (चर्चा अंक -3609)    पर भी होगी। 
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
 --
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

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