मंगलवार, मई 31, 2011

अगज़ल - 19

तेरे जाने के बाद लगा दिल को ऐसे
कोई ग़ज़ल अधूरी छूट गई हो जैसे |

हर शख्स अपने ढंग से निभाता है इसे 
जानकर भी बच न पाया वफा-सी शै से |
शुक्र है खुदा का , अंजाम तक न पहुंचे 
न पूछो आए थे हमें ख्याल कैसे-कैसे |

तुम्हें भुलाने की कोशिश करते हैं हम 
कभी अपने आंसुओं से, तो कभी मै से |

लोगों की नजर में भले जिन्दा हैं मगर 
साँसें तो कब की निकल चुकी हैं रगो-पै से |

यूँ  तो बेवफाई आम बात हो गई है मगर 
गम है तो यही ' विर्क ' तुम भी निकले वैसे |

दिलबाग विर्क 
* * * * *
                               रगो-पै  ----- शरीर 
                 * * * * *

शनिवार, मई 21, 2011

हाइकु - 5

          तोड़ लेती है 
          टहनियों से फूल 
          स्वार्थी दुनिया . 

          संवाद कर 
          असहमति पर 
          विवाद नहीं .

          करते सभी 
          मर्म पर प्रहार 
          चूकें न कभी .

          हारते सदा 
          ये बादल सूर्य से 
          जिद्द न छोड़ें .

          चांदी काटना 
          सत्ता का मकसद 
          मेरे देश में .

          नेता सेवक 
          चुनावों के दौरान 
          फिर मालिक .

          जीओ तो ऐसे
          न डरना किसी से 
          न ही डराना .

          कितना थोथा 
          बादल का घमंड 
          हवा के आगे .

          आओ बचाएं 
          रिश्तों में गर्माहट 
          प्यार दिलों का .

          पिघलाएगी 
          रिश्तों पे जमी बर्फ 
          प्यार की आंच .

             * * * * * 

सोमवार, मई 16, 2011

अगज़ल - 18

   रोते हुए चेहरों पर बनावटी मुस्कान 
  आज के आदमी की, बस यही पहचान ।
  कैसी बेबसी लिख दी खुदा ने तकदीर में 
  पिंजरे में रहकर भरना सपनों की उड़ान ।

  लफ्जों के सिवा कुछ फर्क नहीं इनमें बस 
  एक चीज़ के दो नाम हैं - इंसान , हैवान ।

  अपनी ताकत का लोहा मनवाया उससे 
  जब कभी किसी को मिला कोई बेजुबान ।

  अहसान फरामोशी फितरत है जमाने की 
  गर खुश रहना है तो छोडो करना अहसान ।

  अब वक्त नहीं रहा हर किसी पे ऐतबार का
  मगर ' विर्क ' तुम रहे सदा नादान के नादान ।

दिलबाग विर्क 
 * * * * *

मंगलवार, मई 10, 2011

चीरहरण

  कुछ - न - कुछ तर्क तो 
  रहते ही हैं 
  सबके पास 
  अपनी बात को 
  सत्य ठहराने के लिए .

  ये तर्क 
  अवश्य रहे होंगे 
  सिंहासन के प्रति निष्ठावान 
  भीष्म पितामह के पास .
  ये तर्क 
  अवश्य रहे होंगे
  कुल गुरु कृपाचार्य के पास . 
  ये तर्क 
  अवश्य रहे होंगे 
  कौरवों-पांडवों के गुरु 
  और माननीय सभासद 
  द्रोणाचार्य के पास .
  ये तर्क 
  अवश्य रहे होंगे 
  महान नीति विद 
  विदुर के पास .
  तभी तो 
  वे सभी 
  न सिर्फ खामोश रहे 
  द्रोपदी चीरहरण के समय 
  अपितु 
  इसके बाद भी 
  चिपके रहे 
  अपने-अपने पदों से . 

  इन तर्कों के कवच 
  मौजूद हैं आज भी 
  हम सबके पास 
  तभी तो 
  मुट्ठी भर दुशासन 
  चंद दुर्योधनों के कहने पर 
  आज भी सफल हो रहे हैं 
  द्रोपदी चीरहरण करने में  
  बहुत सारे
  भीष्म पितामहों 
  कृपाचार्यों
  द्रोणाचार्यों  
  और 
  विदुरों के रहते हुए .

      * * * * * 

गुरुवार, मई 05, 2011

हाइकु - 4


            समर्पण                         

          आँखों में आँसू

          दिल मेरा बेचैन

          कारण तू है .


          तुम्हें पा लिया

          अब क्या पाना बाकी

          तुम्हीं बताओ ?


          तेरा हो जाऊँ

          मैं तन से , मन से

          और क्या चाहूँ ?


          तुझको पा लूँ

          खुद को मिटा डालूँ

          चाहत मेरी .


          सर्दी में धूप

          वैसे ही सुहाती है

          जैसे तू मुझे .


          मैं कुछ नहीं

          मेरा कुछ भी नहीं

          बस तू ही तू .



               * * * * *

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