मंगलवार, मार्च 01, 2011

षटपदीय छंद - 3

सच को पूछे न कोई , झूठ हुआ प्रधान 
सच्चे को मिलता जहर , झूठे को सम्मान .
झूठे को सम्मान , देते दुनिया के लोग 
नैतिकता मर रही , गले पड़ा कैसा रोग .
कडुवी दवा जैसा , दुष्टों को मारता सच 
पूछे ' विर्क ' सबसे , झूठ से क्यों हारता सच ?

                * * * * *                

4 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

भाव और शैली सुंदर है ..छंद में लिखना और भाव को बनाए रखना आपकी कविता की पकड़ को दर्शाती है ..आपका प्रयास सराहनीय है

रचना दीक्षित ने कहा…

छंद में कविता सुंदर भावों को सजोकर अच्छी लगी.

ZEAL ने कहा…

मुझे नहीं लगता की सत्य की कभी हार भी हो सकती है , लेकिन हाँ ये भी सच है की झूठ का ही बोलबाला है । सत्य, सादगी-पसंद होता है , नीव की तरह सत्यवादियों की जड़ों में होता है । वो मिट जाते हैं लेकिन झुकते नहीं है ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया!
लिखते रहो!
निखार आता जाएगा!

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