गुरुवार, जनवरी 06, 2011

अग़ज़ल - 6

कैसी मुहब्बत , कैसा प्यार 
आदमी जिंस , दुनिया बाज़ार ।
चुप का ताला लगा लो मुंह पर 
बोलने के हैं यहाँ दुःख हजार ।

भला कैसे निभे दोस्ती जब 
बेबात  ही  हो  जाए  तकरार ।
              
हर चीज़ की हद होती है
कब तक करे कोई इंतजार ।

परेशानियाँ पीछा छोड़ें नहीं 
पतझड़ हो , चाहे हो बहार ।

ख़ुशी तो ' विर्क ', है सुहाना ख्वाब 
जैसे  भी  हो , ये  वक्त  गुज़ार ।

दिलबाग विर्क
* * * * * 

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